अनुसरण हम किसी का भी कर सकते हैं लेकिन सूर्य से अधिक अनुशासित और संकल्पित कोई और नहीं हो सकता

जीवन के प्रत्येक पग पर जब हम कभी भी चारों ओर घूम कर देखते हैं तो हम पाएंगे कि हमारे आस-पास दिखने वाली सभी सजीव अथवा निर्जीव वस्तुएं हमें कुछ न कुछ सिखाने का प्रयास कर रहीं हैं। आसमान में चमकता हुआ सूरज मानो सुबह-सुबह उठकर हम से कह रहा है कि आज भी मैं तुमसे पहले उठ गया हूँ। ये कहने को एक कथन मात्र हो सकता है लेकिन यदि हम इसकी गंभीरता को समझने का प्रयास करें तो हम देखते हैं कि सूरज प्रतिदिन अपने निश्चित समय से उठकर सम्पूर्ण संसार को प्रकाशवान कर देता है। जब हम सूरज की धरती के प्रति प्रतिबद्धता और समय के प्रति नियमितता को ध्यान में रखते हुए इसकी तुलना स्वयं से करें तो हम निश्चय ही स्वयं को सूर्य की तरह अडिग और विश्वसनीय बना सकते हैं। क्या कभी किसी को कहते देखा या सुना है कि सूरज को कल रात में देर हो गई थी तो वो आज देर से निकलेगा, या ये कहते कि आज सूर्य का मन नहीं है वो छुट्टी पर गया है। नहीं… कभी भी नहीं। सामान्य मनुष्य के ऊपर सदैव से पक्षपात के आरोप प्रत्यारोप लगते रहे हैं। आप कितना ही निष्पक्ष रहकर कार्य करने का प्रयास करते रहें लेकिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं हम पर इसका आरोप स्वाभाविक रूप से लग जाता है अथवा लगा दिया जाता है। लेकिन कभी किसी ने ऐसा महसूस किया हो की सूर्य ने अपना प्रकाश किसी एक व्यक्ति को पक्षपात पूर्ण रूप से दिया हो। या अपने असीम ऊर्जा भण्डार से ऊष्मा का वितरण करते हुए किसी भी प्रकार का भेदभाव किया हो। ऐसा नहीं है। ऐसा विश्वास बनाने में सूर्य को अनन्त काल का समय लगा। तो क्यों हम अपने कार्यों के माध्यम से सभी में अपना विश्वास नहीं बना सकते हैं। निश्चय ही बना सकते हैं हमें इसकी चिंता करनी होगी। साथ ही सूर्य को आदर्श मानकर उनका प्रतिपल अनुसरण करना होगा।

सम्पूर्ण प्रकृति का मुख्य ऊर्जा का केंद्र सूर्य ही है। हम सभी को समस्त शक्तियां सूर्य से ही प्राप्त होती हैं। जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर का कोई भी अस्तित्व नहीं रहता है ठीक उसी प्रकार प्रकृति भी बिना ऊर्जा के निराधार है। जब हम मधुमक्खी को देखते हैं तो वो अपने मधु के लिए पुष्पों के परिक्रमा करती है ठीक उसी प्रकार धरती भी अपनी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सूर्य की परिक्रमा करती है।

उदाहरण के लिए यदि हम सूर्य से मिलने वाली निःशुल्क धूप का ही जिक्र करें तो हम पाते हैं कि सूर्य की धूप का यदि ठीक प्रकार से प्रयोग किया जाये तो हम विभिन्न प्रकार के असाधारण रोगों से बच सकते हैं नित्य प्रति धूप लेने मात्र से हमारे अन्दर ऊर्जा का संचार रहता है। क्या कभी आपने सूर्य को अपनी उपलब्धियों के लिए अहम् का शिकार होते देखा है या इतराते हुए। नहीं… न तो क्यों हम सूर्य का अनुसरण न करते हुए अपनी जरा सी उपलब्धि और सम्पन्नता का बिगुल बजाते हुए सातवें आसमान में चढ़ जाते हैं? जरा सोच कर देखिए। खुद को जलाकर जग को रोशन करने की कला और कुशलता सीखनी है तो इसके लिए भी आपको सूर्य देव की ही शरण में ही जाना होगा। उनका अनुसरण करना होगा। इसलिए हमारे देश में वैदिक काल से ही सूर्य की उपासना होती आ रही है। सुबह-सुबह सभी उठकर सूर्य को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं उनसे प्रार्थना करते हुए मंगलमय दिन की शुरुवात करते हैं। सूर्य को समस्त लोकों का केंद्र बिंदु माना गया है। सूर्य को हम देवता की तरह पूजते हैं इनके ही हम प्रत्यक्ष रूप से दर्शन कर सकते हैं। सूर्य की उपासना करने से अक्षय फल प्राप्त होता है। स्वयं कष्ट सहकर जग कल्याण का चिंतन करना भला सूर्य से अच्छा हमें कौन सीखा सकता है।

मनुष्य को आदर्श मानकर चलना सरल है हम मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से देखकर उनकी दिनचर्या की तुलना स्वयं सरलता से कर सकते हैं। हम उन जैसा बनने का प्रयास कर सकते हैं। लेकिन मनुष्य के साथ एक अपवाद सदैव से ही जुड़ा रहा है कि मनुष्य में मनुष्य जैसी प्रवर्ती तो रहेगी ही। कार्य भी उसी प्रकार होंगे और गलतियां भी होंगीं।

जीवन एक लम्बी यात्रा है जब तक नेत्र खुले रहेंगे हम देखते रहेंगे जब तक जीवन है हम अनुभव भी करते रहेंगें। उन्हीं के माध्यम से हम अच्छे और बुरे अनुभवों को महसूस करते हैं और यही हमारे जीवन में प्रेरणा का कार्य करते हैं। देखना महसूस करना, अनुभव करना यही मुख्य चरण हैं जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं, हो सकता है आपको सकारात्मक प्रेरणा मिले या हो सकता है नकारात्मक। यह हमारे अनुभवों पर निर्भर करेगा कि यह हमारे जीवन में किस प्रकार का असर डालेगी। हिंदी के प्रबल हस्ताक्षर कवि सोहन लाल द्विवेदी की पंक्तियाँ हैं “पर्वत कहता शीश उठाकर” स्कूल में यह पढ़ाई जाती है। प्रकृति से प्रेरणा लेने की शायद ही इससे अच्छी कविता कोई और बनी हो या किसी भी साहित्यकार ने लिखी हो।

हमारे लिए प्रेरणा रूप में बड़ी-बड़ी कहानियों और महापुरुषों के जीवन को पढ़ना और अनुसरण करना ही काफ़ी नहीं है। हमें ऐसे प्रेरणा पुंज का चयन करना होगा जो कभी भी, किसी भी विषम परिस्थतियों में भी विचलित नहीं हुआ न ही कभी उसके पथ विमुख होने के संकेत मात्र ही मिले। जो सर्वव्यापी हो, जो हमेशा साथ रहे। इसका सम्पूर्ण विश्व में सूर्य से बड़ा दूसरा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। हम अपने जीवन में सूर्य से स्वयं के जीवन का तुलनात्मक अध्ययन कर माध्यम से प्रेरणा पा सकते हैं। सूर्य देव सात घोड़ो के रथ पर सवार होकर हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें सतत चलते रहना चाहिए न कभी थकना चाहिए न ही विश्राम की चिन्ता करनी चाहिए।

सूर्य की तरह आकाश में चमकना है और दुनिया में छा जाना है तो ठीक उसी प्रकार तपना भी पड़ेगा और उसी अनुशासित जीवन शैली के अनुरूप स्वयं को ढालना भी पड़ेगा।

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