लोकतंत्र में जनता ही माई-बाप, समझनी होगी बात

जब आदमी इवीएम के सामने खड़ा होता है तो किसी न्यायाधीश से कम नहीं होता , और जिंदा जमीर कभी भूलता नहीं कि किसने आपके लिए क्या किया है।

एक मशहूर कहावत है एंगर इज टेंपररी,ट्रुथ इज परमानेंट। लोकतंत्र ट्रुथ यही है की जनता ही माई-बाप है जो किंग और किंगमेकर्स की नस ढीली कर देती है। जैसे ईश्वर अहंकार से भर जाने पर घुटने टेकने पर बाध्य कर देता है । वैसे ही जनता बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों का अहं चूरन कर देती है। अपने आप को विश्लेषक कहता हर आदमी बौना हो जाता है जब जनता विश्लेषण करती है कि सही क्या और गलत क्या । एक मनोविज्ञान है चुनाव का समझते रहिए । जब आदमी इवीएम के सामने खड़ा होता है तो किसी न्यायाधीश से कम नहीं होता , और जिंदा जमीर कभी भूलता नहीं कि किसने आपके लिए क्या किया है।किंतु इन दिनों रोजगार , स्वास्थ्य और विकास की आड़ में जाति, धर्म, पैसे और दारू पर लड़े जा रहे चुनाव यह स्पष्ट करते है कि ये मुद्दे अमर है और हर पाँचवें साल सब पीछे छोड़ यही प्रासंगिक हो जाते हैं । जो ढर्रा वर्तमान पीढ़ी ने अपने उत्कर्ष के लिए चुना है यकीन मानिए आने वाली पीढ़ियां घृणा करेंगी ।

देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन एक प्रश्न सुरसा जैसे मुंह बाए खड़ा है कि आजादी के इतने वर्षों में हमने क्या खोया-क्या पाया । यदि तुलना करें तो जितना हमने खोया है उतना हासिल न कर सके।

डॉलर आज 80 रूपये के बराबर है, तो मंहगाई चरम पर, नौकरियां न हैं न निकट भविष्य में होने के आसार हैं, जीडीपी नकारात्मक दिशा में है तो शिक्षा व्यवस्था धड़ाम है । देश का नौनिहाल मोबाइल आदि डिवाइसेस में व्यस्त है तो युवा नशे में मस्त है ।चुनाव निकट आते ही पांच साल मुंह न देखने/दिखाने वाले नेता जी सब अब चरागाह में निकल रहे, विकास (विनाश) कार्यों की समीक्षा करने, जो कार्य कभी किया ही नहीं उसका ढोल पीटने, तो पकड़िए माइक, मांगिए इनसे लेखा-जोखा, और अगर नहीं मांग सकते तो सुनिए।चाय की दुकान पर बैठ कर चौधरी बनना बंद कर दीजिए बंद करिए चापलूसी, बंद करिए पूंछ हिलाना। लोकतंत्र/प्रजातंत्र में माई-बाप जनता है, जनता का चुना गया सेवक नहीं, उसे सेवा करने कहिए, न करे तो पांच साल का अनुबंध पूरा होते ही सेवा समाप्ति करिए, बैक टू पवेलियन करिए, बहुत बेरोजगारी है दूसरा नौकर रखिए, लेकिन जांच-परख कर रखिए । जोर से सांस लीजिए, जी खोल के हंसिए, आबाद रहिए, जिंदाबाद रहिए।

लेखक वीर शिवम सिंह एम०ए०, एल०एल०एम०(गोल्डमेडलिस्ट) अधिवक्ता, उच्च न्यायालय इलाहाबाद, सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर बेबाक राय रखते हैं और भारत सिंह ग्रुप आफ एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस के प्रबंध निदेशक हैं.

 

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