पत्रकारिता का गिरता स्तर, उठते सवाल, जिम्मेदार कौन ?
किसी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया उतनी ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ इस प्रकार पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है
एक दौर था जब पत्रकार ने अपनी लेखनी के जरिए समाजिक हित में बड़े आंदोलनों को जन्म दिया व समाज ने पत्रकार को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना, लेकिन आज स्थितियां लगातार बदल रही हैं। पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हो गई है, जिस कारण पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। निजी फायदे के लिए सोशल मीडिया पर फेक न्यूज भेजने का चलन बढ़ा है, जिसका सीधा असर समाज पर पड़ रहा है व समाज में पत्रकार की छवि धूमिल हो रही है।
एक दौर था जब पत्रकारों ने एक स्वर में पत्रकारिता के सिद्धातों का पालन करते हुए पत्रकारिता के मूल स्वरूप को बनाये रखने पर जोर दिया। साथ ही समाज की कठिन समस्याओं पर भी अपनी लेखनी के माध्यम से सरकारों को चेताने की बात कही गयी है, ताकि मानव जीवन के लिए कठिन होती जा रही समस्याओं का समय रहते ही निराकरण हो सके। किसी भी इमारत या ढांचे को खड़ा करने के लिए चार स्तंभों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार लोकतंत्र रूपी इमारत में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना जाता है जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में मीडिया को शामिल किया गया है| किसी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया उतनी ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ इस प्रकार पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है जिसपर मीडिया का पूरा का पूरा ढांचा खड़ा होता है जो नीव का कार्य करता है यदि उसी को भ्रष्टाचार व असत्य रूपी घुन लग जाए तो मीडिया रूपी स्तम्भ को गिरने से बचाने व लोकतंत्र रूपी इमारत को गिरने से बचाने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त थी कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द देश की राजधानी में बैठे नेता, राजनेता, व अधिकारियों की कुर्सी को हिला देता था,वहीँ आज कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मीडिया को ग्लैमर की दुनिया और कमाई का साधन बना रखा है अपनी धाक जमाने व गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता क्यूंकि सिर्फ प्रेस ही काफी है गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं, किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं, हेलमेट की ज़रूरत नहीं मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए शून्य हो क्यूंकि सभी इनसे डरते जो हैं चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है, इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद करते हैं, खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं, और भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा समाज के सामने पीटते हैं मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे, ईमानदार और अपने कार्य के लिए समर्पित रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सुकून से उनका काम भी नहीं करने देते ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।
आज हद तो यह है कि आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपने कारोबार को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता में प्रवेश कर रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार को बढ़ावा मिल रहा है और हमारा लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन खोखला हो रहा है जो आज नहीं तो कल हमारे लिए घातक सिद्ध होगा। पत्रकारिता समाज का आईना होती है जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाती है अब यदि पत्रकार और बुराई के बीच में सेटिंग हो जाती है तो न अच्छाई समाज के सामने आयेगी और न ही बुराई।