क्या आपको पता है कि दुनिया में पहली बार कहां बने पटाखे, भारत में कैसे हुई पटाखों की शुरुआत?
दीवाली से ठीक पहले देश में पटाखों पर गली मोहल्ले से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस जारी है. कई राज्यों में दीवाली पर कुछ घंटों के लिए पटाखें फोड़ने के लिए छूट दी गई है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो किसी भी व्यक्ति के जश्न मनाने के खिलाफ नहीं है लेकिन ये जश्न दूसरों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता.दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए पटाखों को बैन करने का फैसला चर्चा में है. हालांकि, इनमें से कई राज्यों में दीवाली पर कुछ घंटों के लिए पटाखें फोड़ने के लिए छूट दी गई है. कोर्ट भी पटाखों को लेकर सख्त नजर आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो किसी भी व्यक्ति के जश्न मनाने के खिलाफ नहीं है लेकिन ये जश्न दूसरों की जान की कीमत पर नहीं हो सकता. हर वर्ष दीवाली के मौके पर पटाखों को लेकर होने वाला ये हो-हल्ला अब आम हो चला है. लेकिन सवाल है कि आज भारत में जिन पटाखों का 5000 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार है, ये आए कहां से, इनका चलन कब से शुरू हुआ और भारत पटाखों के निर्माण में दुनिया में किस नंबर पर है? ऐसे ही कई और सवाल जिनके जवाब हम यहां आपको बता रहे हैं…
कहां और कैसे हुई पटाखों की शुरुआत?
पटाखों की शुरुआत को लेकर कई प्रकार की कहानियां हैं, लेकिन कुछ इतिहासकार इसकी शुरुआत और खोज चीन में बताते हैं. बताया जाता है कि छठी सदी में ही चीन में पटाखों की शुरूआत एक दुर्घटना के साथ हो गई थी. दरअसल, एक खाना बनाने वाले रसोइए ने गलती से सॉल्टपीटर (पोटेशियम नाईट्रेट) आग में फेंका, जिसके बाद उससे रंगीन लपटें निकलीं. इसके बाद रसोइए ने साल्टपीटर के साथ-साथ कोयले और सल्फर को मिलाकर उसका चूर्ण भी इसमें डाला, जिसके बाद काफी तेज धमाका हुआ और रंगीन लपटें भी निकलीं. इस धमाके के साथ ही बारूद की खोज हुई और पटाखों की शुरुआत हुई.हालांकि, कई जगह यह लिखा गया कि यह कारनामा चीन के सैनिकों ने किया था, उन्होंने कोयले पर सल्फर फेंका जो पोटैशियम नाइट्रेट और चारकोल के साथ मिलकर बारूद बन गया और धूप की गर्मी से तेज धमाका हुआ. इसके बाद इस मिश्रण का इस्तेमाल बांस के नली में भरकर विस्फोट करने के लिए किया जाने लगा. यानी पहली बार पटाखे बांस से तैयार किए गए थे.यह प्रमाणित है कि बारूद की शुरुआत चीन से ही हुई. क्योंकि उससे बाहर का कोई प्रमाण या तथ्य इस बात की पुष्टि नहीं करते कि वहां बारूद की खोज हुई. चीन में बारूद के मिलने के प्रमाण की एक और कहानी है. इस कहानी के मुताबिक चीन में करीब 22 सौ वर्ष पहले लोग बांस को आग में डाल देते थे और गर्म होने पर इसकी गांठ फट जाती थी, इसकी आवाज काफी ज्यादा होती थी. चीनी लोग उस समय मानते थे कि बांस के फटने की आवाज से डरकर बुरी आत्माएं भाग जाएंगी, बुरे विचार भी दूर हो जाएंगे और सुख-शांति करीब आएगी. इसलिए वो प्रमुख त्योहारों पर यह काम करते थे. इसके बाद यहीं से नव वर्ष, जन्मदिन, विवाह, त्योहार जैसे खुशी के प्रमुख मौकों पर आतिशबाजी की परंपरा की शुरुआत हुई.
महाभारत काल से भी इसका एक किस्सा जुड़ा है. गौड़ मराठी संत कवि एकनाथ अपनी किताब में साल 1570 में लिखी गई एक कविता को शामिल किया है जिसमें बताया गया है कि रुक्मिणी और भगवान कृष्ण के विवाह में आतिशबाजी की गई थी.
चीन से बाहर कब निकले पटाखे?
पटाखों के चीन से बाहर निकलने की कहानी 13वीं सदी में शुरू होती है. यही वो समय था जब बारूद चीन से यूरोप और अरब देशों में पहुंचा और फिर यहां बारूद का इस्तेमाल शक्तिशाली हथियार बनाने में होने लगा. इस दौरान आतिशबाज़ी बनाने की विद्या (पायरोटेक्निक) की शुरूआत के लिए पूरे यूरोप में ट्रेनिंग स्कूल खोले गए और रिसर्च के आधार पर लोगों को बताया गया कि बारूद से पटाखे या हथियार किस प्रकार बनाया जा सकता है. इसके बाद यहां भी खुशी के मौकों पर आतिशबाजी का सिलसिला शुरू हो गया. 13वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक का ही वो दौर था जब चीन के मिंग राजवंश की सैना द्वारा की जानेव वाली गतिविधियों ने दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी भारत और अरब देशों को बारूद की जानकारी दी.
भारत में कब आए पटाखे?
पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर रहे राजीव लोचन ने एक न्यूज वेबसाइट से बातचीत में बताया था कि ‘ईसा पूर्व काल में लिखे गए कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी एक ऐसे चूर्ण का जिक्र मिलता है जिसके जलने पर तेज लपटें पैदा होती थीं, जिसे बांस जैसे किसी नलिका में डालकर बांधने पर पटाखा बन जाता था.’हालांकि, भारत में पटाखों का इतिहास 15वीं सदी से भी पुराना है, जिसकी झलक सदियों पुरानी पेंटिंग्स में देखने को मिलती है, जिसमें फुलझड़ियों और आतिशबाजी के दृश्य उकेरे गए हैं. इससे पता चलता है कि भारत में उस दौर में भी पटाखे मौजूद थे जिस समय का लिखित साहित्य हमारे पास नहीं है या न के बराबर है. हालांकि, भारत में 15वीं सदी में पटाखों का प्रमाण मिलता है. बाबर ने भारत पर जब हमला किया तो उस समय हथियार के तौर पर बारूद के इस्तेमाल के तथ्य हैं. वहीं, शाहजहां के बेटे दारा शिकोह के बेटे के विवाह से जुड़ी 1633 की एक पेंटिंग में भी आतिशबाजी देखने को मिलती है. इतिहासकार पीके गोड़े ने अपनी किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ फायरवर्क्स इन इंडिया बिटवीन 1400 एंड 1900 एडी’ में 1518 में गुजरात में हुई एक ब्राह्मण दंपत्ति की शादी का जिक्र करते हैं और बताते हैं कि इस शादी में आतिशबाजी की गई थी.
17वीं सदी में भारत आए यात्री फ्रैंकोसिस बर्नियर ने लिखा है कि उस समय पटाखों का इस्तेमाल हाथी जैसे बड़े जानवरों की ट्रेनिंग में भी किया जाता था. वो बताते हैं कि लड़ते हुए बड़े जानवरों को पटाखों की आवाज से ही अलग किया जाता था. दरअसल, वो जानवर धमाके की आवाज से डर जाते थे और पीछे हट जाते थे. यही कारण रहा होगा कि बारूद से तैयार बम के गोलों का जब युद्ध में इस्तेमाल शुरू हुआ तो हाथियों का इस्तेमाल कम हो गया, क्योंकि वो डर जाते थे.
भारत में कहां बनते हैं सबसे ज्यादा पटाखे और कैसे हुई शुरुआत?
चीन के बाद भारत दुनिया भर में सबसे ज्यादा पटाखा बनाने वाला देश है. इसका कारोबार 5000 करोड़ से भी अधिक का है, जिसमें लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी है. लेकिन सवाल ये है कि भारत में सबसे ज्यादा पटाखे बनाए कहां जाते हैं? और इसका सही जवाब है चेन्नई से 500 किमी दूर स्थित शिवाकाशी. शिवाकाशी में 800 से ज्यादा पटाखा यूनिट्स हैं जो देश में बनने वाले पटाखों का 80 फीसदी हिस्सा तैयार करतै हैं. शिवाकाशी के नडार भाईयों (षणमुगम नडार और अय्या नडार) ने 1922 में कोलकाता से माचिस बनाने की कला सीखी और फिर शिवाकाशी लौट गए. यहां पर दोनों ने मिलकर पैसे जोड़े और माचिस की एक छोटी सी फैक्ट्री लगाई. कारोबार जम जाने के बाद दोनों सहमति के साथ 1926 में अलग हो गए. इसके बाद दोनों ने पटाखे बनाने का काम शुरू किया. आज दोनों की कंपनियां (स्टैंडर्ड फायर वर्क्स और श्री कालिश्वरी फायर वर्क्स) देश की दो सबसे बड़ी पटाखा निर्माता कंपनियां मानी जाती हैं. यहीं से 80 फीसदी पटाखे बनाकर कई देशों में स्पालाई किए जाते हैं.
रिपोर्ट :अजीत तिवारी