कैसे लौटेगा पट्टी का गौरव, दलदल में धंसा विकास का पहिया

पट्टी हमेशा से जिले की राजनीति का मुख्य एवं प्रभावी आकर्षण रहा है । हालांकि एक सत्य और दुर्भाग्य यह भी है कि यह सफर इसने कभी देश की राजनीति का केंद्र बिंदु रह कर प्राप्त किया है । यहीं की उर्वरा भूमि से जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी, पंडित अटल बिहारी बाजपाई इत्यादि युगपुरूषों ने राजनैतिक खेती शुरू की, और शीर्ष प्राप्त किया । आज जब लोकसभा के चुनाव नजदीक हैं और अभी अभी एक पंचायत चुनाव का घर्षण पट्टी ने झेला है तो यह बात उठनी लाजमी हो जाती है कि इन सबके बदले पट्टी को मिला क्या ? कभी कैबिनेट मंत्री, विधायक, सांसद, तो चेयरमैन, ब्लाक प्रमुख, ग्राम प्रधान, सहित विभिन्न जन प्रतिनिधियों का क्या जन सरोकार रहा है या सिर्फ हवा-हवाई बातें और वायदे ही रहे हैं । यदि निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो हकीकत यही है कि एक समय तक पट्टी ने जहां विकास के मुद्दों पर सूबे में मिशाल कायम रखी पिछले 1 दशक से यहां अकाल पड़ा नजर आ रहा है । जब जब चुनाव नजदीक आते हैं मदारी के रूप में वोट के ठेकेदार अपनी दुकान लगा लेते हैं और जनता बंदर बनी नाचती नजर आती है । वोट नोट -दारू से खरीदे जाते हैं तो कभी जातिगत समीकरण से जनता की भावनाओं से खेला जाता है । कभी गुंडई दबंगई से माहौल सुधार देने का घटनाक्रम भी सुनाई/दिखाई पड़ जाता है ।ऐसे में एक महत्वपूर्ण यक्ष प्रश्न यह है कि यह सब कैसे ठीक होगा, कैसे लौटेगा पट्टी का गौरव, कैसे जागेंगे जन प्रतिनिधि, कैसे जनता अपने अधिकार एवं महत्व को समझेगी । विकास के रथ का पहिया जो अब दलदल में धंस चुका है उसको बाहर खींच निकालने का संयुक्त प्रयास कैसे होगा, कौन आगे आएगा ।

 

लेखक वीर शिवम सिंह एम०ए०, एल०एल०एम०(गोल्डमेडलिस्ट) अधिवक्ता, उच्च न्यायालय इलाहाबाद, सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे पर बेबाक राय रखते हैं और भारत सिंह ग्रुप आफ एजुकेशनल इंस्टिट्यूशंस के प्रबंध निदेशक हैं.

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