नदियों, तालाबों समेत परंपरागत जल स्त्रोत नहीं बचाए, तो जीवन संकट में पड़ जाएगा: जल पुरुष राजेंद्र सिंह

60 देशों में जल संरक्षण यात्रा कर कर बढ़ाया देश का गौरव

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त जल पुरुष डॉ राजेंद्र सिंह की गाँव लहरिया से ख़ास बातचीत

गाँव लहरिया न्यूज टीम ने हाल ही में विश्वप्रसिद्ध डॉ राजेंद्र सिंह का साक्षात्कार किया। जल संरक्षण के लिए डॉ राजेंद्र सिंह को वर्ष 2001 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 2005 में जमनालाल बजाज पुरस्कार मिला। 2008 में द गार्जियन ने उन्हें ऐसे 50 लोगों की सूची में शामिल किया, जो पृथ्वी को बचा सकते हैं। 2015 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज, 2018 में हाउस आफ कामन्स, यूनाइटेड किंगडम में अहिसा सम्मान, वर्ष 2019 में अमेरिका सियटल से अर्थ रिपेयर और नई दिल्ली में पृथ्वी भूषण सम्मान मिला था।

गाँव लहरिया से बातचीत में कहा कि पानी संकट को लेकर तीसरा विश्वयुद्ध के हालात बन रहे हैं। नदियों, तालाबों समेत परंपरागत जल स्त्रोत नहीं बचाए, तो जीवन संकट में पड़ जाएगा। हर किसी को पानी बचाने की पहल करनी होगी। केवल सरकार के भरासे न बैठे रहे।

धरती को पानीदार बनाने के अभियान में जुटे हैं डॉ राजेंद्र सिंह

डॉ राजेंद्र सिंह 64 साल के हो चुके हैं  इसमें 47 साल उन्होंने जल संरक्षण के लिए लगा दिए। राजस्थान में 11800 जल संरचनाएं बनवाकर 1200 गांवों को पानीदार बनाकर दस लाख लोगों के लिए काम किया। देशभर में अरवरी, रुपारेल, सरसा, भगानी, महेश्वरा, साबी, तबिरा, सैरनी, जहाजवाली, अग्रणी, महाकाली व इचनहल्ला समेत 12 नदियां पुनर्जीवित कराया। 60 देशों में जल संरक्षण यात्रा की। डौला गांव में 700 साल पुराना तालाब पुनर्जीवित कराने का दावा है।

राजेंद्र सिंह का जन्म बागपत के डौला में छह अगस्त 1959 को हुआ है। वह आयुर्वेद में स्नातक व हिदी से एमए हैं। वह जल नीति में सुधार की मांग, गंगा को निर्मल कर गंगत्व बचाने, गंगा व श्वेत पत्र जारी करने, जल साक्षरता तथा जंगल बचाओ-जीवन बचाओ जैसे अभियानों के चलते सुर्खियों में रहे हैं। वह राजस्थान में अलवर के भीकमपुरा गांव में पर्यावरण के लिए काम करने वाली तरुण भारत संघ संस्था चलाते हैं।

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