समभाव फाउंडेशन के प्रयासों से खुशहाल हुई ‘रीमा’ की ज़िंदगी

“आसमान हासिल हो ना हो, ये तो मुकदर की बात हैं,
लेकिन हम प्रयास ही न करें, ये गलत बात हैं”

अंकित पाण्डेय/रिपोर्टर 

प्रतापगढ़। यह कहानी रीमा की है रीमा एक ग्रहणी हैं। रीमा प्रतापगढ़ के सदर तहसील की रहने वाली हैं रीमा शहर के ही एक किराए के मकान में रहकर अपने बच्चों के साथ जीवन व्यतीत करती हैं । रीमा पिछले कई सालों से अपने दो बच्चों के साथ इसी शहर में रहती हैं और पति बाहर रहता है। किंतु पिछले वर्षों में कोरोना के कारण रीमा की जिंदगी में काफी उथल-पुथल रही। बंद कमरों में रहने की वजह से रीमा की जिंदगी एकदम बदल सी गई और अकेले रहते रहते वह पिछले कुछ दिनों से मानसिक रूप से भी परेशान रहने लगी। रीमा के मन में नकारात्मक विचार आने लगे या यह कहें कि रीमा आंशिक रूप से मानसिक अवसाद का शिकार होने लगी थी।

संगठनं के फाउंडर प्रभात पाण्डेय ने गाँव लहरिया रिपोर्टर को बताया कि रीमा सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे संगठन समभाव फाउंडेशन में संपर्क किया, जिसके क्रम में हमारी टीम ने रीमा से संपर्क कर उनके परेशानियों को समझा। हमारे संगठन के काउंसलर द्वारा उनकी काउंसलिंग की गई, उन्हें अच्छे विचारों की तरफ मोटिवेट किया गया और रीना को यह बताया गया की एक अलग दुनिया भी है जिसमें वह अपने साथ-साथ लोगों का भी भला कर सकती हैं। क्योंकि रीमा पहले से ही सिलाई कढ़ाई जानती थी इसलिए उसे उसी क्षेत्र में जाने हेतु हमारे द्वारा प्रोत्साहित किया गया । अब रीमा आसपास के लोगों को बुलाकर उन्हें सिलाई सिखाती हैं।

यह कार्य रीमा के द्वारा बहुत ही मामूली पैसे में किया जाता है। पिछले 10 महीनों में रीमा द्वारा लगभग 40 लोगों को सिलाई सिखाई जा चुकी है। जिससे रीमा की मासिक आय भी लगभग 6000 रुपए की है ।अब रीमा हंसी-खुशी अपने जीवन को जी रहे हैं ।अभी वह इस क्षेत्र में और आगे जाना चाहती हैं और लोगों को सिलाई जैसे कार्यों में सम्मिलित करके कुछ बदलाव करना चाहती हैं।

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