निद्रा से जागे जगत के पालनहार श्री हरि ‘विष्णु’
आज है देव उठनी एकादशी
देव उठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) का सनातन परम्परा में अत्यधिक महत्व है आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के मध्य श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं।
प्राणियों के पापों का नाश करके पुण्य वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष ‘प्रबोधिनी’एकादशी को निद्रा से जागते हैं,तभी सभी शास्त्रों ने इस एकादशी को अमोघ पुण्यफलदाई बताया गया है
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘हरि प्रबोधिनी एकादशी’कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले मनुष्य को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञों को करने के बराबर फल मिलता है।
इस चराचर जगत में जो भी वस्तुएं अत्यंत दुर्लभ मानी गयी है उसे भी मांगने पर ‘हरिप्रबोधिनी’एकादशी प्रदान करती है। देवर्षि नारद जी की जिज्ञासा शांत करते हुए ब्रह्मा जी कहते हैं कि पुत्र ! मनुष्य के द्वारा किए हुए मेरु पर्वत के समान बड़े-बड़े पापों को भी ये एकादशी एक ही उपवास से भस्म कर डालती है। इसी दिन श्रीविष्णु निद्रा को त्यागते हैं जिसके परिणामस्वरूप जड़ता में भी चेतनता आ जाती है और सृष्टि में भी नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। देवताओं में भी सृष्टि को सुचारू रूप से चलाने की नूतन शक्ति आ जाती है।
इस व्रत का माहात्म्य बतलाते हुए श्रीमहादेव जी भी कार्तिकेय से कहते हैं कि हे व्रत धारियों में श्रेष्ठ कार्तिकेय !जो पुरुष कार्तिक मास की इस तिथि से अंतिम पांच दिनों [पाँच रात्रि] में ‘ॐ नमो नारायणाय’इस मंत्र के द्वारा श्रीहरि का पूजन-अर्चन करता है वह समस्त नरक के दुःखों से छुटकारा पाकर अनामयपद को प्राप्त होता है।
आचार्य सर्वश जी बताते हैं कि इस व्रत को भीष्मजी ने भगवान वासुदेव से प्राप्त किया था इसलिए यह व्रत ‘भीष्मपंचक’नामसे भी प्रसिद्द है। इस दिन सभी प्राणियों को एकादशी का व्रत करना चाहिए और भगवान शालिग्राम माता तुलशी का विधिवत पूजन करना चाहिए ॐ नमो नारायणाय इस मंत्र का अथवा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जप करना चाहिए और भगवान से प्रार्थना करना चाहिए कि सभी प्रकार के पापों का विनाश हो गृह में शुभता प्रदान हो।