“आदिवासी महिलाओं की आवाज़: संघर्ष से सम्मान तक” – हाशिए से मुख्यधारा तक की यात्रा

भारत की आदिवासी महिलाएँ अपने हक, सम्मान और अस्तित्व के लिए सदियों से संघर्ष कर रही हैं। उनकी अनकही कहानियाँ, साहसिक संघर्ष और सामाजिक बदलाव में उनकी भूमिका को दर्शाने के लिए डॉ. आशुतोष वर्मा, डॉ. आलोक कुमार पांडे और डॉ. प्रतिमा की संयुक्त लेखनी से निकली यह महत्वपूर्ण पुस्तक “आदिवासी महिलाओं की आवाज़: संघर्ष से सम्मान तक” पाठकों के समक्ष एक प्रेरणादायक विमर्श प्रस्तुत करती है। पार्थ प्रकाशन, देहरादून द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक समाज के हाशिए पर खड़ी महिलाओं की आवाज़ को बुलंद करती है और उनके सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ साबित होती है।
पुस्तक की विशेषताएँ:
1. आदिवासी महिलाओं की सामाजिक स्थिति का विश्लेषण – यह पुस्तक आदिवासी महिलाओं की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक स्थिति को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करती है।
2. संघर्ष से सम्मान की यात्रा – इसमें उन महिलाओं की कहानियाँ शामिल हैं जिन्होंने अपने संघर्ष के बल पर न केवल अपनी ज़िंदगी बदली, बल्कि समाज को भी नई दिशा दी।
3. नीतिगत अनुशंसाएँ – पुस्तक केवल समस्या को उजागर करने तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए प्रभावी नीतिगत सुझाव भी प्रदान करती है।
4. साहित्यिक और शोधपरक दृष्टिकोण – यह पुस्तक आदिवासी महिलाओं के अधिकारों पर ऐतिहासिक, सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है।
लेखकों का परिचय:
डॉ. आशुतोष वर्मा – वे एक शिक्षाविद, शोधकर्ता और लेखक हैं, जिन्होंने राजनीति विज्ञान और मानवाधिकार विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त की है। वे सामाजिक न्याय और आदिवासी अधिकारों के मुद्दों पर निरंतर शोध कर रहे हैं।
डॉ. आलोक कुमार पांडे – पत्रकारिता और जनसंचार में गहरी पकड़ रखने वाले डॉ. पांडे सामाजिक बदलाव और नीतिगत सुधार के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
डॉ. प्रतिमा – मीडिया अध्ययन और महिला सशक्तिकरण पर विशेष शोध कार्य करने वाली डॉ. प्रतिमा एक प्रभावशाली शिक्षाविद हैं, जिन्होंने आदिवासी समुदायों में महिलाओं की स्थिति को लेकर गहन अध्ययन किया है।
पार्थ प्रकाशन: सामाजिक बदलाव के प्रति समर्पित
पार्थ प्रकाशन, देहरादून हमेशा से समाजिक और अकादमिक रूप से महत्वपूर्ण विषयों को प्रकाशित करने के लिए जाना जाता है। यह प्रकाशन उन लेखकों को मंच प्रदान करता है, जो शोध और साहित्य के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
निष्कर्ष
“आदिवासी महिलाओं की आवाज़: संघर्ष से सम्मान तक” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक आंदोलन, एक दस्तावेज़ और एक प्रेरणास्त्रोत है। यह शोधकर्ताओं, समाजशास्त्रियों, नीति-निर्माताओं, और आम पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। पार्थ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक आदिवासी महिलाओं के संघर्ष और सशक्तिकरण की अनकही कहानियों को सामने लाने का एक प्रभावी प्रयास है।